गुरुवार, 7 जुलाई 2011

बर्फ से...

एक समंदर है वहां हिलोरे मारता
लेकिन ढंका है बर्फ कि सिल्लियों से
ओ सूरज तुम इतना गर्म हो जाओ
कि पिघल जाये सारी बर्फ
इस तरह कि
समंदर में उठने लगे लहर
लील ले फिर चाहे वह
इस धरा को

ओ बर्फ
तुम क्यों जमी हो यहाँ
तुम जाओ पहाड़ों को ढको
समंदर से तुम्हारा क्या वास्ता

मंगलवार, 5 जुलाई 2011

क्या मृत्यु तुम्हें लौटा लायेगी मेरी ओर प्रिय

मैं अक्सर सोचती हूँ
उन तमाम संभावनाओं के बारे में
जो तुम्हें लौटा लाये मेरी ओर
शायद

मेरा गुस्सा नहीं ला सका तुम्हें वापस
जबकी अच्छी तरह जानते हो तुम कि
बेहद आहात थी मैं उस वक़्त
जब लावे की तरह फूट पड़ता था गुस्सा बात बात पर

आंसू जो रोके नहीं रुकते थे पलकों के भीतर
उन्होंने भी तुम्हें दूरतर ही किया
नहीं यह सोच कर नहीं बहते थे वे कि
तुम्हें करीब लाया जाये
या कि
चले जाओगे तुम दूर इन्हें देख कर
बस एक सैलाब सा उमड़ता था आँखों के भीतर
और पलकों की बाड़
बाँध नहीं पाती थी उन्हें

सब कुछ को भुला कर
एक नई शुरुआत की चाह के साथ
तुम्हें भर लेना चाहा बाँहों में
पर तुम साँस नहीं ले पाते हो वहां
खुद को छुपा लेना चाहा
तुम्हारे बीहड़ में
पर वहां पसरा सन्नाटा
मुझे भी कहाँ ठहरने देता है वहां

इस शहर में
जहाँ रोजाना गुज़रना होता है
भारी भरकम ट्रकों और बसों के बीच से
रेल का फाटक पार करना होता है हर दिन
गाड़ियाँ बहुत बेरहमी से चलती हैं
सबको जल्दी है कहीं पहुँचने की
डर जाती हूँ मैं
कभी भी आ सकती हूँ किन्ही बेरहम पहियों के नीचे
मुझे नहीं जल्दी कही भी पहुँचने की
उन क्षणों में मुझे तुम याद आते हो
और पूछती हूँ खुद से ही
क्या मृत्यु तुम्हें लौटा लायेगी मेरी ओर प्रिय

शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

अन्तहीन हैं मेरी इच्छाएं

समय बहुत कम है मेरे पास
और अन्तहीन हैं मेरी इच्छाएं

गोरैया सा चहकना चाहती हूँ मैं
चाहती हूँ तितली कि तरह उड़ना
और सारा रस पी लेना चाहती हूँ जीवन का

नाचना चाहती हूँ इस कदर कि
थक कर हो रहूँ निढाल

एक मछली की तरह तैरना चाहती हूँ
पानी की गहराइयों में

सबसे ऊंचे शिखर से देखना चाहती हूँ संसार
बहुत गहरे में कहीं गुम हो रहना चाहती हूँ मैं

इस कदर टूट कर करना चाहती हूँ प्यार कि बाकि न रहे
मेरा और तुम्हारा नमो निशान
इस कदर होना चाहती हूँ मुक्त कि लाख खोजो
मुझे पा न सको तुम
फिर
कभी भी कहीं भी