१.
वे रंगों को बिखेर देते हैं कागज पर और तलाशते रहते हैं उनमे
औघड रूपाकार
सब चीजों के लिए
कोई नाम है उनके पास
हर आकार के पीछे
कोई कहानी
बनती बुनती रहती है उनके मन में
कभी पूछ कर तो देखो
यह क्या बनाया है तुमने
झरने की तरह बह निकलती हैं बातें
नही, प्रपात की तरह नही
झरने की तरह
मीठी
मन्थर
कहीं थोडा ठहर जाती
और फिर
जहाँ राह देखती
उसी दिशा मे बह निकलती
भाषा जहाँ कम पड़ने लगती है
उचक कर थाम लेते हैं कोई सिरा
मानो
गिलहरी फुदक कर चढ़ गई हो
बेरी के झाड पर
उनसे जब बात करो
तो बोलो इस तरह
जैसे बेरी का झाड
बढा देता है अपनी शाख को
गिलहरी की तरफ
वे
फुदक कर थाम लेंगे
आपके सवालों का सिरा
पर जवाब की भाषा
उनकी अपनी होगी
२.
डुबोया हरे रंग मे
और
खींच दी हैं लकीरें
हृदय पर
उसने गाढ़े नीले से
रंग दिया है फलक को
सुर्ख लाल रंग को
बिखेर दिया है उसने
घर के आँगन मे
पीले फूलों से ढक दिया है उसने
आस पास की वनस्पतियों को
उसे हर बार चाहिए
नया सफैद कागज
जिसे हर बार
सराबोर कर देना चाह्ता है वह रंगों से
मेरा बच्चा रंगरेज़
३.
धूप और बारिश के बीच
आसमान मे तना इन्द्रधनुष हैं
मेरे बच्चे
आच्छादित है फलक
उनकी सतरंगी आभा से
जिसके आर पार पसरा है
हरा सब ओर
उनके पीछे
कहीं ज्यादा गाढा हो जाता है
आसमान का नीला