"मेमने का कबाब," मैंने कहा।
"मेमना," मन ही मन स्वाद लेते हुए फरीद ने कहा। " काबुल में मेमने का गोश्त अब सिर्फ तालिबान खाते हैं।" मुझे बाजू पकड़ कर खींचते हुए वह बुदबुदाया, "नाम लेते ही ..."
एक गाड़ी हमारी तरफ आ रही थी। "दाढ़ी वालों की गश्त," फरीद ने कहा।
तालिबान को देखने का यह मेरा पहला मौका था। मैंने उन्हें टीवी पर देखा था, इंटरनेट पर, अखबारों और पत्रिकाओं में देखा था। और यहाँ मैं उनके सामने था, महज़ 50 फ़ीट की दूरी पर और मेरे मुंह का जायका बदल गया था, डर की एक ठंडी सी लहर मेरे पूरे शरीर में दौड़ गयी। मानो मेरी खाल मेरी हड्डियों से चिपक गयी हो और दिल ने धड़कना बंद कर दिया हो। वे आ रहे थे। अपने पूरे रौब-दाब के साथ।
लाल रंग का टोयोटा ट्रक हमारे पास आते हुए लगभग ठहर गया। ट्रक के पिछले हिस्से में सख्त निगाह वाले नौजवानों की एक टोली बैठी थी और उनके कन्धों पर कलाश्निकोव टंगी थी। सबने दाढ़ी रखी थी और काली पगड़ियां पहने थे। उनमें से एक सांवले रंग का नौजवान, घनी भौहों वाला, जिसकी उम्र 20 बरस से ज़्यादा न होगी, वह अपने हाथ में लिए हंटर को ट्रक के पीछे दाएं-बाएं एक लय में घुमा रहा था। उसकी यहाँ-वहाँ घूमती निगाह मुझसे टकराई। हमारी नज़र मिली। मैंने अपने आप को इस तरह नंगा कभी महसूस नहीं किया था। और तभी उस तालिबान ने तम्बाकू थूक कर मुंह साफ़ किया और दूसरी तरफ देखने लगा। मेरी सांस में सांस लौट आयी। ट्रक धूल का गुबार उड़ाता हुआ जादेह के रास्ते पर बढ़ गया।
"तुम्हारी दिक्कत क्या है?" फरीद गुर्राया।
"क्या?"
"उनकी तरफ कभी मत घूरना। तुम समझ रहे हो? कभी नहीं!"
"मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था," मैंने कहा।
"आपके दोस्त सही कह रहे हैं, आग़ा। इसकी बजाय तो आप रेबीज़ वाले कुत्ते को लकड़ी चुभा कर छेड़ सकते हैं," किसी ने कहा। यह नयी आवाज़ एक बूढ़े भिखारी की थी, जो पास ही एक जर्जर, गोलियों से छलनी पुराने मकान की सीढ़ियों में नंगे पैर बैठा था। उसने तार-तार हो चुका चाप कोट, चिथड़ेनुमा कपडे और धूल से सनी पगड़ी पहनी थी। उसकी बाईं पलक एक खाली कोटर पर झूल गयी थी। अपने आर्थराइटिस वाले हाथ से ट्रक जिस दिखा में गया उस तरफ इशारा करते हुए उसने कहा। "वे ताक में घूमते रहते हैं. इस ताक में कि कोई उनको उकसाये। देर-सबेर कोई न कोई उनकी इस इच्छा को पूरा कर देता है। फिर कुत्तों की दावत हो जाती है, उनकी बोरियत दूर होती है और वे सब एक साथ चिल्लाते हैं, 'अल्ला हू अकबर!' और जब कोई उन्हें नहीं उकसाता तो हिंसा तो होती ही रहती है, है न!"
"अपनी नज़र को अपने पैरों पर गड़ा कर रखो, जब भी तालिबान आस-पास हों," फरीद ने कहा।
"आपका दोस्त सही सलाह दे रहा है," बूढ़े भिखारी ने कहा। उसने ज़ोर से खाँसा और अपने गीले-मिटटी सने रुमाल से मुंह ढँक लिया। उसने सांस संभालते हुए कहा,"माफ़ करना, क्या आप मुझे कुछ अफगानी दे सकेंगे?"
"बस! चलो यहाँ से," फरीद ने बांह पकड़ कर मुझे खींचते हुए कहा।
मैंने भिखारी को करीब सौ-हज़ार अफगानी दिए, लगभग तीन डॉलर के बराबर रहे होंगे। जब वह लेने के लिए आगे झुका तो उसकी दुर्गन्ध, फटे दूध सी बदबू और कई हफ़्तों से नहीं धुले पैरों की गंध, मेरे नथुनों में भर गयी और मुझे ज़ोर की उबकाई आने को हुई। उसकी इकलौती आँख चौकन्नी हो कर इधर से उधर घूमी और उसने जल्दी से पैसों को अपनी कमर में खोंस लिया।
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