रविवार, 27 जून 2010

रोटी की गंध

पेट की भूख का रिश्ता रोटी से था

यूं रोटी का और मेरा एक रिश्ता था

जे बचपन से चला आता था

रोटी की गंध में

मां की गंध थी

रोटी के स्वाद में

बचपन की तकरारों का स्वाद

इसी तरह आपस में घुले-मिले

रोटी से मां, भाई और बहन के रिश्तों का

मेरा अभ्यास था

पिता

वहां एक परोक्ष सत्ता थे

जिनसे नहीं था सीधा किसी गंध और स्वाद का रिश्ता

बचपन के उन दिनों

रोटी बेलने में रचना का सुख था

तब आड़ी-तिरछी

नक्शों से भी अनगढ़

रोटी बनने की एक लय थी

जो अभ्यास में ढलती गई

अब

रोटी की गंध में

मेरे हाथों की गंध थी

रोटी के स्वाद में

रचना और प्रक्रिया पर बहसों का स्वाद

रोटी बेलना अब रचना का सुख नहीं

बचपन का अभ्यास था।


1 सितम्बर 1997

3 टिप्‍पणियां:

pramod ने कहा…

''उन दिनों रोटी बेलने में रचना का सुख था तब आड़ी-तिरछी नक्शों से भी अनगढ़ रोटी बनने की एक लय थी जो अभ्यास में ढलती गई''

''रोटी बेलना अब रचना का सुख नहीं बचपन का अभ्यास था।''


खत्‍म होती रचनात्‍मकता की अनुभूति को बहुत संवेदनात्‍मक ढंग से व्‍यक्‍त करती हैं ये पंक्तियाँ. जिन्‍दगी में उन चीजों का जो कभी रचना का आनन्‍द देती थीं ऐसी जगह पहुँच जाना जहाँ वे मात्र अभ्‍यास की नीरसता का भान देने लगें बहुत खतरनाक होता है और ये पंक्तियाँ इस बात को बखूबी अभिव्‍यक्‍त कर गईं हैं. कभी ना कभी हम सभी अपनी अपनी जिन्‍दगी में इस अनुभूति से गुज़र रहे होते हैं.

prabhat ने कहा…

in kavitaon ne F1 ke dinon ki yaad dila di aur yah ki kya kamal rachte the HUM.

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

पिछले २ सालों की तरह इस साल भी ब्लॉग बुलेटिन पर रश्मि प्रभा जी प्रस्तुत कर रही है अवलोकन २०१३ !!
कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
ब्लॉग बुलेटिन के इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन प्रतिभाओं की कमी नहीं 2013 (7) मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !