उदासी ने फिर
बिखेर लिए हैं अपने बाल
अकेलेपन के आगोश में
गिरती चली जा रही हूं
हुई शाम यादों के इक गाँव में, परिंदे उदासी के आने लगेवहीं ज़र्द पत्तों का कालीन है, गुलों के जहाँ शामियाने लगे[डॉ. बशीर बद्र]
उफ, गहरा।
सुन्दर पंक्तियाँ हैं.
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हुई शाम यादों के इक गाँव में, परिंदे उदासी के आने लगे
वहीं ज़र्द पत्तों का कालीन है, गुलों के जहाँ शामियाने लगे
[डॉ. बशीर बद्र]
उफ, गहरा।
उफ, गहरा।
सुन्दर पंक्तियाँ हैं.
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