शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

उदासी

उदासी ने फिर

बिखेर लिए हैं अपने बाल

अकेलेपन के आगोश में

गिरती चली जा रही हूं

4 टिप्‍पणियां:

के सी ने कहा…

हुई शाम यादों के इक गाँव में, परिंदे उदासी के आने लगे
वहीं ज़र्द पत्तों का कालीन है, गुलों के जहाँ शामियाने लगे
[डॉ. बशीर बद्र]

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

उफ, गहरा।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

उफ, गहरा।

pramod ने कहा…

सुन्‍दर पंक्तियाँ हैं.