यह किसकी आहट है
इतनी महीन
मानो सहला रही हो कानों को
इतनी शिद्दत
मानो खींच रहा हो चुम्बक लोहे को
प्यार क्या यह तुम हो
यह किस रंग मे चले आ रहे हो तुम
थोडा ठहरो
अभी तो बहुत पडे हैं बाकी घर के काम
थोडा मोहलत देना संवरने को भी इस बार
जाने कब् से खो गई है जूडे की पिन
कब् से नहीं देखा है आईना जीभर
अभी तो तवे पर रोटी जलने को है
अभी तो भरा नही है मटके में पानी
कहीं तुम बहुत जल्दी में तो नही हो
थोडा रुकना वहीं
लौट न जाना यूं ही
कि मैं जुटा लूं थोडा साहस
एक गहरी सांस लूं और खो जाऊं इस तरह
कि छूट न जाए यह साथ्
फिर कहीं इस बार
तुम जब खो जाते हो
बावरी सी भटकती हूँ मैं
तुम जब होते हो आस पास
मैं जुटाती रहती हूँ सामान
तुम्हे कहाँ रखूं
कैसे सहेजूं
क्या तुम गुल्दस्ते में पानी की तरह रहना पसंद करोगे
या चाहोगे जूडे में फूल की जगह
यदि मैं कर लूं बन्द तुम्हें पलकों में
तुम रुकना वहाँ कुछ देर
कि बन्दी नही बनाना चाहती हूँ मैं तुम्हें
बस ओट में कर लेना चाहती हूँ कुछ देर
कि तुम्हारे होने से सुन्दर बनती है धरती
और मुझे प्यार है इस सुन्दर धरती से
जिस पर मेरे बच्चों को करना है
उगते हुए सूरज का स्वागत्
अनन्त के पार तक भी
2 टिप्पणियां:
संग तो प्यार को अच्छा लगता है, अधिकार उसे पागल कर देता है।
वाह जी वाह ! प्यार हो तो ऐसा . जो महबूब के बिना एक पल भी रहना मुश्किल हो मगर फिर भी उसे क़ैद करने की खवाहिश नहीं . बहुत खूब . सच्चे प्यार को खूब शब्दों से संवारा है आपने .
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