शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

अन्तहीन हैं मेरी इच्छाएं

समय बहुत कम है मेरे पास
और अन्तहीन हैं मेरी इच्छाएं

गोरैया सा चहकना चाहती हूँ मैं
चाहती हूँ तितली कि तरह उड़ना
और सारा रस पी लेना चाहती हूँ जीवन का

नाचना चाहती हूँ इस कदर कि
थक कर हो रहूँ निढाल

एक मछली की तरह तैरना चाहती हूँ
पानी की गहराइयों में

सबसे ऊंचे शिखर से देखना चाहती हूँ संसार
बहुत गहरे में कहीं गुम हो रहना चाहती हूँ मैं

इस कदर टूट कर करना चाहती हूँ प्यार कि बाकि न रहे
मेरा और तुम्हारा नमो निशान
इस कदर होना चाहती हूँ मुक्त कि लाख खोजो
मुझे पा न सको तुम
फिर
कभी भी कहीं भी

3 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

...कि हर ख्वाहिश पे दम निकले।

imprints ने कहा…

behtareen

Shraddha ने कहा…

chahat hai to jindigi , kisi kisi ki to jine ki bhi chah mer jati hai !