गुरुवार, 4 अगस्त 2011

अपना नाम

तुम्हें बहुत सारे प्यार के साथ

जब लिखती हूँ खतों के अंत में अपना नाम

अपने इस चार अक्षर के नाम से

होने लगता है प्यार


जब सुनती हूँ फ़ोन पर

तुम्हारी डूबती आवाज़ में

पुकारा जाना इस नाम को

लगता है मुझे

कितना सुन्दर है यह नाम

इसे इसी तरह जुड़ा होना था

मेरे होने से,

इसी तरह पुकारा जाना था इसे तुम्हारे द्वारा


चालीस की उम्र में

अपने नाम से इस तरह पड़ना प्रेम में

कब सोचा था

यह भी होना है

इस जीवन में

पर अब यह जो है

इसके होने से

होने लगता है

अपने होने से भी प्यार

7 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

प्रेम में शब्द जीवित हो जाते हैं, शब्दों में व्यक्तित्व।

के सी ने कहा…

बहुत सुंदर !

Dharmender ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता देवयानी जी.

Ruchir ने कहा…

सुन्दर...

manjun ने कहा…

The more I read your poetry, the deeper I fall in love With you...... I mean it dear..... Awesome :)

मनोज पटेल ने कहा…

बहुत प्यारी कविता...

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

gazab.....40 ki umra men.....jis tarah se aapne yah kah diyaa.... usne lazawaab kar diyaa....