बुधवार, 28 दिसंबर 2011

धावक

नींद से जागती हूँ
जैसे गोली छूटती है बन्दूक से

सोती हूँ जैसे धावक बैठा हो तैयार
दौड के लिए

शुरू होता है दिन
एक ऐसी दौड की तरह
जिसमे जीत का लक्ष्य नहीं

एक ऐसी मैराथन जिसके लिए
नहीं है सामने कोई धावक
थामने को मशाल
किसी भी निश्चित दूरी के बाद

अपनी मशाल को
अपने हाथों मे थामे मजबूती के साथ्
खत्म होती है दौड
हर रात
ढ़ती हूँ फिर नींद के आगोश में

2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

एक निरन्तर दौड़ हमारी,
थोड़ी उजियारी, अँधियारी।

Suresh kumar ने कहा…

Bahut hi sunder rachna...