गुरुवार, 20 जुलाई 2017

कभी कभी मैं अपना लौटना देखती हूँ

पानी से भरी लबालब झील से 
बारिश की सुबह 
जंगल की तरफ खुली खिड़की से 


मैं देखती हूँ अपना लौटना 
दरवाज़े को धडाम से बंद करना 
सांकल चढ़ाना 
और थक कर लुढ़क जाना 
बिस्तर पे 

एक समय के बाद 
आंसू और सिसकियाँ भी 
साथ नहीं देते 
मैं अपने शून्य में लौट आती हूँ 

1 टिप्पणी:

Satya Prakash ने कहा…

शुन्य में लौट आना ..कैसा है एहसास ये