अद्भुत है..यह शब्दातीत संवाद का भाव जो वार्तालाप की परिधि से मुक्त हो कर चेतना के दूसरे स्तरों पे जाता है..जहाँ शब्द माध्यम नही बहाने होते हैं..बहुरूपिये जैसे..पारंपरिक अर्थों के आवरण से मुक्त..संवाद का यह स्तर ही आदम और इव के बीच का सेतु रहा होगा..जब भाषा की पैदाइश नही हुई थी...पोस्ट याद दिलाती हैं विनोद साहब की दीवार मे खिड़की के जादुई संवादों की..मार्वलस!!
5 टिप्पणियां:
हाँ ,मौन भी अच्छा माध्यम हैं बात करने का.सुन्दर कविता ,बधाई ..
अच्छी कविताएं हैं आपकी।
कम शब्दों में बहुत गहन बात कही है आपने.
मौन की अपनी भाषा है । वह कहती नहीं, बहती है । वह ढहती नहीं, सहती है ।
अद्भुत है..यह शब्दातीत संवाद का भाव जो वार्तालाप की परिधि से मुक्त हो कर चेतना के दूसरे स्तरों पे जाता है..जहाँ शब्द माध्यम नही बहाने होते हैं..बहुरूपिये जैसे..पारंपरिक अर्थों के आवरण से मुक्त..संवाद का यह स्तर ही आदम और इव के बीच का सेतु रहा होगा..जब भाषा की पैदाइश नही हुई थी...पोस्ट याद दिलाती हैं विनोद साहब की दीवार मे खिड़की के जादुई संवादों की..मार्वलस!!
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