माँ बताती थी
आसमान से घर की बाखर में गिरी थी मैं
ऐन माँ की आँखों के सामने
और उन्होंने गोद में उठा लिया था मुझे
जन्म की कथा तो माँ ही जानती हैं
कितने ही आसमानों से गिरी हूँ जाने कितनी बार
माँ ने हर बार भर लिया बाँहों में
दिया दुलार
मेरे लिए यह दुनिया
घर की बाखर है
जिसमे लगाती हूँ दौड़ निःसंकोच
खेलती हूँ, हंसती हूँ गाती हूँ
आसमान को छूने की जिद ठाने हूँ
पिता सीढी ले आते हैं
माँ साया बन साथ रहती है
3 टिप्पणियां:
bahut hi sunder.... Kabhi kabhi lagta hai ki aap ki kavita kisi ke maa ya pita banane ke usse samay ko ek satik roop main pase karti hai... badhai...
achi kavita
हर बार सहारा माँ का था..
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