जबकि जरूरत थी जागने की
कहा गया
सो जाओ अब
रात बहुत हो चुकी है
रात है कि तबसे गहराती जा रही है
रात के अकेले पहरेदार की लाठी
हो चुकी जर्जर
गला भर्रा गया है
सीटी अब चीखती नहीं
कराहती है महज
कवि कलाकार
श्रेष्ठता की चर्चा में रत
निकृष्टतम मुहावरों की होड जारी है
गालियों का शब्दकोष रचा जा रहा
इंटरनेट और अखबारों में
जनआंदोलनों में अब भागीदारी
लाइक, शेयर और कमेंट में सिमटी जा रही
नींद से बोझिल पलकें
आखिरी जाम
आखिरी कमेंट
इसी बीच
तमाम नए स्टेटस अपडेट
मुंबई में पत्रकार से बलात्कार
रुपया है कि लुढकता जा रहा
एक लंपट संत का कुकर्म
प्रमाण नहीं
प्रमाण नहीं
शर्म से झुका जा रहा मस्तक
आत्मा पर कुलबुलाता है
बेबसी का कीडा
रात है कि गहराती जा रही
नींद दूर तक कहीं नहीं
और जगाने को कोई अलख भी नहीं
9 टिप्पणियां:
all truth & reality.
मन के बरामदों से उभरते सत्य
संवेदनापूर्ण उत्कृष्ट रचना
संवेदनापूर्ण उत्कृष्ट रचना
मर्त्य देश के निवासी - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः12
बहुत प्रभावी ... आज के सत्य हा हूबहू चित्रण ... आने वाले समय का अंश दिखाया है आपने ...
मन की उहापोह को व्यक्त करते शब्द..
मन की उलझनों पर पड़ी गांठे हैं ये.....
चुभती हैं...कहाँ से आये नींद..
अनु
http://kuchmerinazarse.blogspot.in/2013/10/10.html
शब्दों के माध्यम से ज़ोरदार व्यंग्य ....
आज फेसबुक की वजह से पूरे ब्लॉग जगत पर असर पड़ा है
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