सोमवार, 2 सितंबर 2013

जबकि जरूरत थी जागने की

जबकि जरूरत थी जागने की 
कहा गया 
सो जाओ अब 
रात बहुत हो चुकी है 
रात है कि तबसे गहराती जा रही है 

रात के अकेले पहरेदार की लाठी 
हो चुकी जर्जर 
गला भर्रा गया है  
सीटी अब चीखती नहीं 
कराहती है महज 

कवि कलाकार 
श्रेष्‍ठता की चर्चा में रत 
निकृष्‍टतम मुहावरों की होड जारी है 
गालियों का शब्‍दकोष रचा जा रहा 
इंटरनेट और अखबारों में 

जनआंदोलनों में अब भागीदारी 
लाइक, शेयर और कमेंट में सिमटी जा रही 

नींद से बोझिल पलकें 
आखिरी जाम 
आखिरी कमेंट 

इसी बीच 
तमाम नए स्‍टेटस अपडेट 
मुंबई में पत्रकार से बलात्‍कार 
रुपया है कि लुढकता जा रहा 
एक लंपट संत का कुकर्म 
प्रमाण नहीं 
प्रमाण नहीं 
शर्म से झुका जा रहा मस्‍तक 
आत्‍मा पर कुलबुलाता है 
बेबसी का कीडा 
रात है कि गहराती जा रही 
नींद दूर तक कहीं नहीं 
और जगाने को कोई अलख भी नहीं 

9 टिप्‍पणियां:

Rajesh Bhardwaj ने कहा…

all truth & reality.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

मन के बरामदों से उभरते सत्य

Vandana Ramasingh ने कहा…

संवेदनापूर्ण उत्कृष्ट रचना

Darshan jangra ने कहा…

संवेदनापूर्ण उत्कृष्ट रचना


मर्त्य देश के निवासी - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः12

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत प्रभावी ... आज के सत्य हा हूबहू चित्रण ... आने वाले समय का अंश दिखाया है आपने ...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मन की उहापोह को व्यक्त करते शब्द..

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

मन की उलझनों पर पड़ी गांठे हैं ये.....
चुभती हैं...कहाँ से आये नींद..

अनु

रश्मि प्रभा... ने कहा…

http://kuchmerinazarse.blogspot.in/2013/10/10.html

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

शब्दों के माध्यम से ज़ोरदार व्यंग्य ....


आज फेसबुक की वजह से पूरे ब्लॉग जगत पर असर पड़ा है