चौके पर चढ कर चाय पकाती लडकी ने देखा
उसकी गुडिया का रिबन चाय की भाप में पिघल रहा है
बरतनों को मांजते हुए देखा उसने
उसकी किताब में लिखी इबारतें घिसती जा रही हैं
चौक बुहारते हुए अक्सर उसके पांवों में
चुभ जाया करती हैं सपनों की किरचें
किरचों के चुभने से बहते लहू पर
गुडिया का रिबन बांध लेती है वह अक्सर
इबारतों को आंगन पर उकेरती और
पोंछ देती है खुद ही रोज उन्हें
सपनों को कभी जूडे में लपेटना
और कभी साडी के पल्लू में बांध लेना
साध लिया है उसने
साइकिल के पैडल मारते हुए
रोज नाप लेती है इरादों का कोई एक फासला
बिस्तर लगाते हुए लेती है थाह अक्सर
चादर की लंबाई की
देखती है अपने पैरों का पसार और
वह समेट कर रखती जाती है चादर को
सपनों का राजकुमार नहीं है वह जो
उसके घर के बाहर साइकिल पर चक्कर लगाता है
उसके स्वप्न में घर के चारों तरफ दरवाजे हैं
जिनमें धूप की आवाजाही है
अमलतास के बिछौने पर गुलमोहर झरते हैं वहां
जागती है वह जून के निर्जन में
सूखे गुलमोहर के तले
6 टिप्पणियां:
बहुत अच्छी कविता।
उसके स्वप्न में घर के चारों तरफ दरवाजे हैं जिनमें धूप की आवाजाही है अमलतास के बिछौने पर गुलमोहर झरते हैं वहां जागती है वह जून के निर्जन में सूखे गुलमोहर के तले ....bahut sunder ,hradaysparshi
बहुत ही सुन्दर कविता..
बहुत अच्छी कविता है और इसमें देवयानी की काव्यसामर्थ्य पूरी खूबसूरती से दिखती है। शुभकामनाएं।
gazab ki soch aur pravah
"किरचों के चुभने से बहते लहू पर
गुडिया का रिबन बांध लेती है वह अक्सर
इबारतों को आंगन पर उकेरती और
पोंछ देती है खुद ही रोज उन्हें
सपनों को कभी जूडे में लपेटना
और कभी साडी के पल्लू में बांध लेना
साध लिया है उसने"
आपकी संवेदना से पगी अभिव्यक्ति दिल को गहरे तक प्रभावित करती है।
बेहतरीन कविता के लिए आपको दिल से बधाई देवयानी !
एक टिप्पणी भेजें