क्या दिन में चौबीस की बजाय चंवालीस घंटे नहीं हो सकते
सप्ताह में सात ही दिन क्यों होते हैं
नौ दिन हो जाते तो क्या बुरा था
क्या इतवार दो नहीं आ सकते
रात सोने के लिए क्यों होती है
रातों में क्या जाग कर काम नहीं किया जा सकता
आखिर इस देह को भोजन, पानी, आराम की जरूरत ही क्या है
कितना कुछ तो है
जो हर वक्त करने के लिए अधूरा छूटा रहता है
सिर्फ ऐसा कुछ
जो अपने सही समय पर होता रहे
तो चलता रह सके जीवन का कारोबार
पर समय कमबख्त हमेशा कम क्यों होता है
क्या इन घडी की सूइयों को बांध कर नहीं रखा जा सकता
इन्हें तो घूमना होता है सिर्फ एक दायरे में
लेकिन कैसी सांसत में रहती है जान
इनके पीछे
क्या कभी ऐसा नहीं हो सकता कि
दुनिया की सारी घडिृया कुछ देर के लिए ठप्प पड जाएं